ऋचा जैन की कविताएँ
षड्यंत्र शब्द सताते रहे सालों साल बिछाते रहे एक मायावी जाल ख़ुद से बातें करना ख़ाली दृश्य देख मुसकाना अकथनीय पे झुँझलाना उन्मत्त सी रहने लगी जब तक कि मैंने लेखनी नहीं उठाई मैं वक्र जोड़ने दो बिंदूओं को मुझे टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों से स्वछंद घुमावों से सजाने दो कँगूरे, बेलबूटे - सरल रेखाएँ मेरी प्रवृत्ति नहीं अ-ध्यान जतन कर छोड़ने को प्रपंच दुनिया के दृढ़ होकर आज बैठा मैं ध्यान करने मेरुदण्ड तान के, योग-मुद्रा बाँध के, भ्रू-मध्य केंद्र बना, बैठा मैं ध्यान करने ढूँढने की आस में इक चमकते बिंब को खोजने की चाह में उस परम आनंद को श्वास के प्रवाह को भी किंचित मंद कर शून्य में समाने को, बैठा मैं ध्यान करने प्रयास से इंद्रियों को कुछ संयमित कर भावना के वेग को भी कुछ संतुलित कर विचार कर विचारों के जटिल जाल से मुक्त हो जाने को, बैठा मैं ध्यान करने मैं देखता, एक तरल निकलता ललाट से बुनता सघन जाल, अविराम एक मकड़ा पास, पास ही है जाल, प्रतिपल विकराल मुँदे चक्षुओं से भी देखता मैं,