प्रत्यक्षा की कविताएँ
माइग्रेन- 1 उसने मेरे माथे में एक सुरंग बिछा दी है बंकरों के पीछे जवान मुस्तैद हैं हथगोले लिये बारूद की गंध , उड़ते परखचे , खून , मांस मज्जा चीख , रोना बिलखना मर जाना खेत हुये सब , पटा है युद्ध क्षेत्र , मरघट का सन्नाटा विश्व का सबसे खूँखार युद्ध मेरे माथे के भीतर लड़ा जा रहा है माइग्रेन- 2 मेरी शिराओं में किसी ने बर्फ डाल दिया है एक जमी हुई शिला आँख के भीतर पुतलियों के रास्ते एक सुरंग लाल , गर्म , चमकीला बाहर अब भी कितनी धूप है और जीवन कैसे सँभावनाओं से भरा माइग्रेन- 3 कितना गर्म है सब दहकता लाल एक कठफोड़वा है कोई चीता भी घात लगाये चौकन्ना एक पेड़ है सख्त , खुरदुरा उसके पत्ते सुर्ख लाल गिरते हैं एक एक एक जबतक पूरी धरती हो नहीं जाती आरक्त माइग्रेन- 4 जैसे साँप का फन जैसे पत्थर से कुचलता उसका हाथ जैसे भूत रेल सीटी बजाती भागती हर रात