जॉन हेन्स कविताएँ
नींद
चाहे सो जाएँ चाँद के तले
बंजारों की तरह, अपनी जेब में
चांदी के सिक्के लिए हुए,
या रेंगकर गहरे चले जाएँ किसी कंदरा में
जिसमें से गुनगुने, रोयेंदार चमगादड़
खीसें काढ़ते हुए भरते हैं उड़ान,
या पहन लें एक बड़ा काला कोट
और बस अंधकार में कर लें कूच,
हम बन जाते हैं आख़िरकार पेड़ों की तरह
जो खड़े रहते हैं ख़ुद के बीच,
सोच में डूबे।
और जब हम जाग जाते हैं
— अगर जागना होता भी है —
तो लौट आते हैं एक एकाकी बचपन की
छवियाँ लिए हुए — हाथ
जो हमने थामे थे, धागे जो हमने खोले थे
अपने नीचे की परछाइयों से,
और ध्वनियाँ गोया किसी और
कमरे से आती हुई आवाज़ें
जहाँ हमारे जीवन का कोई हिस्सा
रचा जा रहा था — जिसके पास हम लेटे हुए थे,
इस इंतज़ार में कि अपना जीवन शुरू हो।
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पहाड़ पर
लंबी निष्क्रियता से उबरकर हम चले,
खड़ी ढाल वाली चरागाह पर झुकते हुए,
सरसफलों की खोज में,
फिर लाल हो रही धूप में ही
हवा के थपेड़े खा रहे पहाड़ की धार से
गुज़रते हुए गए ऊपर।
एक परछाईं हमारे पीछे-पीछे
पहाड़ पर चली आई,
उगते हुए काले चाँद की तरह.
ढाल पर पतझर की बत्तियाँ
मिनट-दर-मिनट बुझ गईं।
हमारे आसपास हवा और पत्थर
रात के बारे में फुसफुसाते रहे . . .
उत्तर दिशा से एक विशाल बादल उड़ा,
और पहाड़ लोप हो गया
बारिश और
आँधी से उजियाए अँधेरे में।
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सुरंग
गुमशुदगी शुरू होती है तुमसे,
तुम जो हमेशा तैयार हो मुड़ने के लिए,
जो चाहते हो एक बदलाव,
एक मुखौटा, एक चेहरा जो तुम्हारा नहीं,
एक गड्ढा जड़ों से
और गुस्साई आहों से भरा।
किसी अंदरूनी दूरी पर छोड़ जाते हो तुम
एक परछाईं, या एक परछाईं का खोल.
क़रीब खड़ी होती है,
सोती है परछाईं.
तुम्हारी रवानगी की बयार से
रीत गए सारे थल चिन्ह—
खेत और नदियाँ, सड़कें
जिन्हें मैं नहीं जानता, यहाँ तक कि
तुम्हारा नाम भी . . .
तुम्हारा चेहरा बत्तियों भरी एक सुरंग
जिसे मैं अब देख नहीं पा रहा।
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सड़क पर
ग़रीब होना अच्छी बात नहीं.
हवा को सुनना अच्छी बात है,
लेकिन तब नहीं जब रात में तुम
सड़क पर अकेले खड़े होते हो,
सर्दियों की अपनी सारी गठरियाँ लिए,
जैसे कोई डाक पेटी करती है इंतज़ार
एक ऐसे डाकिये का जो कभी नहीं आएगा।
हवा आती है झोंके पर झोंका,
और दौड़ते हुए गुज़रती है
बत्तियों और ख़ालीपन की
रफ़्तार के साथ।
मैं सिर्फ़ घर के बारे में सोचता हूँ.
मेरे पास चप्पलों का एक जोड़ा है
एक पत्नी के लिए जिसके
नंगे पाँव कर रहे हैं इंतज़ार।
पेड़ों के बीच एक रौशनी है —
वो सिर्फ़ एक सादी जगह है,
जिसमें दो रूहें आपस में बंधी हैं
फ़िक्र और ग़रीबी से।
ग़रीब होना अच्छी बात नहीं —
और हवा में कोई सिक्के नहीं।
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ख़ून की झील
मिलर क्रीक की पगडंडी पर सैर करते हुए
हम पहुंचे बर्फ़ में ख़ून की एक परनाली के पास,
और उसके आगे देखी सड़क पर बनी
एक छोटी लाल झील।
एक हिरन का ख़ून जिसे पिछली सर्दियों में
गोली मार दी गई थी, जब कठोर बर्फ़ ठनकी थी.
सड़ती हुई बर्फ़ में बाल और चीड़ के शंकु
आपस में हुए थे गुत्थमगुत्था —
एक नन्ही झील
ख़ून से सने हाशियों वाली।
हम देखते रहे देर तक और गहराई से,
हत्या की बात की हमने चुपचाप
और आगे बढ़ गए।
उस घाटी केपरले छोर पर
हमें मिला एक विशाल लाल खलिहान
मौसम की मार झेलता,
फ़ौलाद से कसा और
उसी की छत से ढका।
ठंडा लाल रंग था तरो-ताज़ा,
हवा में थी तारपीन और
बर्फ़ की गंध।
अंग्रेजी से अनुवाद - सरबजीत गरचा
अलास्का के पोएट लौरिएट रहे. सात कविता संग्रह और निबंध
की पाँच पुस्तकें प्रकाशित. लेनोर मार्शल पोएट्री अवार्ड और
वेस्टर्न स्टेट्स बुक अवार्ड से सम्मानित।
सरबजीत गरचा । कवि, अनुवादक एवं प्रकाशक। अंग्रेज़ी में दो
और हिंदी में एक कविता संग्रह प्रकाशित. मराठी से हिंदी एवं
अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी-हिंदी परस्पर अनुवाद के लिए चर्चित। कविता
संग्रह 'अ क्लॉक इन द फ़ार पास्ट' शीघ्र प्रकाश्य।
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