वोल्हा हापेएवा की कविताएँ



कि तुम ठहरे पेड़
और हवा ने तज दिया है तुम्हें

खड़े रह सकते हो तुम सदियों तक अचल
और तुम्हारे मन को सुहाता नहीं
पंछियों का कलरव भी

कि तुम एक पेड़ ठहरे
जिसे तज दिया है हवा ने





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मैं जागती हूँ गैरों की घड़ी के अलार्म से
मैं फिर से लिखती हूँ गैरों का लिखा
मैं सोचती रहती हूँ गैरों के मृतकों के बारे में
मैं मिलती हूँ गैरों के दोस्तों से
मैं बोलती हूँ गैरों की भाषाएँ
मैं  लेती हूँ अपनी तस्वीर गैरों के बच्चों के साथ
मैं सहलाती हूँ गैरों की बिल्लियों को
मैं किसी के कमरों में नहीं  रहती
मैं किसी की किताबें नहीं पढ़ती
मैं किसी के कांटे से नहीं खाती
और ना ही इस्तेमाल करती हूँ किसी का चाकू
मैं किसी का कंबल ओढ़ कर नहीं सोती
मैंने इसी तरह सीखा है मेहमान बनना
इस गैरों और किसी की नहीं दुनिया में
कि बाद में जब मेरा स्वागत नहीं होगा
मैं मर सकूँगी अपनी ही मौत से।


अंग्रेजी से अनुवाद - मोहन राणा 



वोल्हा हापेएवा/Volya Hapeyeva/Вольга Гапеева
[1982,मिन्स्क:बेलारूस] कवि, विचारक, अनुवादक और भाषाविद् हैं। 
कविता, गद्य और नाटक के अलावा कभी-कभी बच्चों के लिए किताबें
लिखती हैं। वोल्हा की रचनाएँ दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित हो
चुकी हैं और नवीनतम कविता संग्रह "द ग्रामर ऑफ़ स्नो" 2017 में 
प्रकाशित हुआ है। 



[Hindi translations by Mohan Rana from English translations of Belarusian poems by Volha Hapeyeva.]



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