पेड़ : कुछ दोहे पेड़ चिड़ी का घौंसला, साँसों का मधुगीत। हारे-हारे पाँव का, हरियाला संगीत।। छाया मन ऐसी बसी, ज्यों कोयल मन आम। मरुथल मन उद्यान ज्यों, दशरथ के मन राम।। पीपल फैला दूर तक, इक पनघट के पास। थका हुआ सूरज रुका, लगा बुझाने प्यास।। कटे हुए हर पेड़ से, चीख़ा एक कबीर। मूरख कल को आज की, आरी से मत चीर।। इक दिन जब मर जाएँगे, पेड़ लगा कर फाँस। लिए कटोरा घूमना, माँगा करना साँस।। ----------------- आलोचक उसने मेरे पसीने को पानी कहा मैं चुप रहा उसने मेरे आँसू को पानी कहा मैं चुप रहा उसने मेरे ख़ून को पानी कहा मैं चुप रहा लेकिन जब उसने अपनी लार को भी लावा कहा तो मैं चुप नहीं रहा अपनी कसी हुई मुट्ठियों और भिंचे हुए दाँतों के साथ मैं मुड़ा मुस्कुराया और चल दिया आगे अब मेरी कविता को उस आलोचक की कोई दरकार नहीं है ... ----------------- ग़ज़ल ग़ज़ल है तू , तो गाना चाहता हूँ सरापा तुझको पाना चाहता हूँ तेरे पहलू में काटूँ उम्र सारी कोई ऐसा बहाना चाहता हूँ मेरे ...
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